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दहेज़ लेना देना जुर्म नहीं, आपका सामाजिक हक़ बनता है?

निष्पक्ष
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बहुत पहले से सुनते हुए और पढ़ते हुए आ रहे हैं कि “दहेज़ लेना और देना दोनों कानून की दृष्टि में अपराध है” और समाज की दृष्टि में भी. लेकिन शायद अब ये जुमला अपनी यथार्थ को खोता नजर आ रहा है. आज धन दौलत का वाहयात पदर्शन समाज के बीच में खेला जा रहा है, मेरी नजर में उसकी जितनी निंदा की जाय उतना ही कम है. आज दहेज़ लेना या देना अपराध की श्रेणी में नहीं आता है बल्कि आपकी सामजिक हैसियत को दर्शाता है, जिसका उदहारण आये दिन हम टी वी चैनल्स, समाचार पत्रों और अपने आस पड़ोस में देखने को मिल रहा है. खास तौर पर यदि वो वर्ग जिसके कन्धों पर समाज की जिम्मेदारियों को सौपा गया है, जिसको देश के कानून और समाज की सुख समृधि के लिए प्रतिनिधित किया गया है अगर वही तबका अपनी धन दौलत का नंगा पदर्शन समाज के बीच में करें तो कल्पना की जा सकती है कि हमारे समाज पर इसका क्या असर पड़ रहा होगा. आज हमारे राजनेताओं और संपन वर्ग में शादी के सुअवसर पर शादियों में करोड़ों रूपये का अविरल गंगा जो बहाई जा रही है और लाखों करोड़ों का लेना देना का समाज में जो पदर्शन किया जा उसका समाज के एक माध्यम वर्ग पर क्या असर पड़ रहा होगा इस पर विचार मनन करने का प्रयास कोइ नहीं कर रहा है. इस प्रकार दहेज़ का खुले आम पदर्शन दहेज़ लोभियों को और उत्प्रेरित करेगा और दहेज़ के सुनामी को और बहुत पहले से सुनते हुए और पढ़ते हुए आ रहे हैं कि “दहेज़ लेना और देना दोनों कानून की दृष्टि में अपराध है” और समाज की दृष्टि में भी. लेकिन शायद अब ये जुमला अपनी यथार्थ को खोता नजर आ रहा है. आज धन दौलत का वाहयात पदर्शन समाज के बीच में खेला जा रहा है, मेरी नजर में उसकी जितनी निंदा की जाय उतना ही कम है. आज दहेज़ लेना या देना अपराध की श्रेणी में नहीं आता है बल्कि आपकी सामजिक हैसियत को दर्शाता है, जिसका उदहारण आये दिन हम टी वी चैनल्स, समाचार पत्रों और अपने आस पड़ोस में देखने को मिल रहा है. खास तौर पर यदि वो वर्ग जिसके कन्धों पर समाज की जिम्मेदारियों को सौपा गया है, जिसको देश के कानून और समाज की सुख समृधि के लिए प्रतिनिधित किया गया है अगर वही तबका अपनी धन दौलत का नंगा पदर्शन समाज के बीच में करें तो कल्पना की जा सकती है कि हमारे समाज पर इसका क्या असर पड़ रहा होगा. आज हमारे राजनेताओं और संपन वर्ग में शादी के सुअवसर पर शादियों में करोड़ों रूपये की अविरल गंगा जो बहाई जा रही है और लाखों करोड़ों का लेना देना का समाज में जो पदर्शन किया जा उसका समाज के एक माध्यम वर्ग पर क्या असर पड़ रहा होगा इस पर विचार मनन करने का प्रयास कोइ नहीं कर रहा है. इस प्रकार दहेज़ का खुले आम पदर्शन दहेज़ लोभियों को और उत्प्रेरित करेगा और दहेज़ के सुनामी को और विनाशकारी बनाएगा.

दुःख होता है जब आज दहेज़ के कानून की याद सभी को तभी आती है जब कोई नारी दहेज़ की प्रताड़ना का शिकार होती, लेकिन जो शक्श इस हवा को और वेगमान बनाते है, जो इसको और प्रोत्साहित करते हैं, उनकी खबर लेने वाला कोई नहीं है. कल्पना कीजिये  जब किसी भूखे के सामने अगर लजीज ब्यंजनों का लुत्फ़ लिया जाय या केवल सामान्य भोजन का लुत्फ़ ही लिया जाय तो उस भूखे के चित में उस भोजन को प्राप्त करने की कितनी प्रबल इच्छा जागृत होती है और उसको प्राप्त करने के लिए वो किस किस हद तक जा सकता है, उसका अंदाजा लगाया जा सकता है. इसका उदहारण आये दिन  शहरों में होने वाली शादी ब्याह के दंगलों  में देखा जा सकता है जब गली मुह्हले और झोपिडियों में रहने वाले बच्चे इस प्रकार की शादी ब्याह के दंगलों और नाच गानों में शामिल हो जाते है और अपनी क्षुदा पूर्ती की कोशिश करते हैं. हमारे बीच में कई ऐसे भी महानुभाव होते है जो इन गली मुह्हले और झोपडी वाले बच्चों को उस कार्यक्रम से डरा धमकाकर दूर करने की भी कोशिश करते हैं.

कहने का तात्पर्य सिर्फ इतना ही है कि इस प्रकार हमारा आर्थिक संपन्न वर्ग शादी ब्याह में धन दौलत का जो नंगा पदर्शन करते है वो सरासर गलत है. इसका समाज पर कहीं न कहीं परोक्ष और अपरोक्ष रूप से असर पड़ता है. अगर दहेज़ देना और लेना दोनों अपराध है तो इसका सख्ती से पालन होना चाहिए और इसके लिए कुछ सीमायें तय होनी चाहिए.

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