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इक मासूम प्यारा सा नन्हा था वो
कन्धों में बड़ा सा थैला लिए गलियों में डोल रहा था वो
इक मासूम प्यारा सा नन्हा था वो
कभी इधर देखता कभी उधर देखता
शायद तंग गलियों में कुछ ढून्ढ रहा था वो
इक मासूम प्यारा सा नन्हा था वो
चेहरे पर अजीब सी कसक, आँखों में टक टकी
जमीं पे नजरें गढ़ाए लग रहा था वो
इक मासूम प्यारा सा नन्हा था वो
मैला आंचल अधखुला बदन
नंगे पाँव दर दर भटक रहा था वो
इक मासूम प्यारा सा नन्हा था वो
बिखरी हुई जुल्फें, पसीने से तर बतर शरीर
शायद किसी चीज के लिए परेशान सा लग रहा था वो
इक मासूम प्यारा सा नन्हा था वो
कभी इस गली से उठाता, कभी उस गली से उठाता
पता नहीं अपने थैले में क्या क्या भर रहा था वो
इक मासूम प्यारा सा नन्हा था वो
बढ़ते हुए कदम अचानक ठिठक गए
जब मिला उसको एक बड़ा सा ढेर
अपने कोमल हाथों से खंगालते हुए
पता नहीं किस गढ़े धन की तलाश में लगा हुआ था वो
इक मासूम प्यारा सा नन्हा था वो
स्व-रचित
सुभाष कांडपाल
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