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लोक तंत्र में आंदोलनों की परंपरा कोई नयी है, आजादी से पहले जो आन्दोलन हुए हैं, वो आजादी को प्राप्त करने के लिए लड़े गए हैं और आजादी के बाद जो आन्दोलन हुए हैं वो अपने अधिकारों को प्राप्त करने के लिए लड़े गए हैं. आजादी के बाद न जाने कितने असंख्य आन्दोलन हुए है और अभी भी हो रहे हैं लेकिन कभी भी कोई राजनैतिक दल उन आंदोलनों के बारे में इतना चिंतित नहीं दिखाई दिया. आज भी प्रतिदिन देश के विभिन कोनों में हजारों आन्दोलन हो रहे है. बेरोजगार लोग रोजगार के लिए आंदोलित है तो कहीं महिलाएं शराब विरोधी आन्दोलन कर रहीं है. कोई अपने रोजी रोटी और जंगल जमीन के लिए आन्दोलन कर रहे हैं तो कोई अपनी भाषा कला संस्कृति को बचाने के लिए आंदोलित हैं. कहने का तात्पर्य सिर्फ इतना है कि हर रोज कोई न कोई आन्दोलन हो रहा है लेकिन इतनी ब्यापक दृष्टि में कोई भी राजनीतिक दल या राजनेता चिंतित नहीं दिखाई दिया, लेकिन जब आज अन्ना हजारे में नेतृत्व में देश से भ्रष्टाचार मिटाने के लिए जो लोग एकजुट हुए हैं उनकी एकता को देखकर सारे राजनीतिक दलों के होश उड़ गए हैं, क्यों?. अंग्रेजों ने फूट डालो और राज करो की जो नीति अपनाकर भारत में अपना शासन किया था उसी नीति को नीति आधार बनाकर आजादी के बाद हमारे राजनैतिक दलों ने अपनाकर अपने ही लोगों प्रयोग करना शुरू कर दिया और इसका परोक्ष और अपरोक्ष लाभ भी उनको मिलता रहा. कभी जाति के नाम पर तो कभी क्षेत्र के नाम पर. कभी हिन्दू के नाम पर तो कभी मुसलमान के नाम पर. हरबार राजनीतिक दलों ने लोगों को जोड़ने का नहीं बल्कि परोक्ष और अपरोक्ष रूप से तोड़ने का प्रयास किया. आज सब लोग जब सभी मतभेद भुलाकर भ्रष्टाचार के खिलाप एकजुट होकर खड़े हुए हैं तो हमारे राजनैतिक दलों के पैरों टेल जमीन खिसक गयी है. उनको दर सताने लगा है कि अगर जनता इस प्रकार जागरूक होती जाएगी तो उनकी दाल कैसे गलेगी? उनकी राजसत्ता कैसे चलेगी?
कबीर दास जी का एक दोहा है-
दुःख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोई
जो सुख में सुमिरन करे तो, दुःख कहे को होय
हमारे राजनेता और सरकारें यदि भ्रष्टाचार के मसले पर इतनी ही चिंतित होती तो शायद आज अन्ना हजारे को ये कदम नहीं उठाना पड़ता और न ही आम जनता जो न कि अन्ना को जानती है पहिचानती है, उनका साथ न देती. कोई ये नहीं कह रहा है कि सारे राजनेता भ्रष्ट है, लेकिन जो भ्रष्टाचार का साथ दे रहे है वो भी तो अपने आप में भ्रष्टाचार की श्रेणी में आता है. भ्रष्टाचारियों को बचाना, भ्रष्टाचारियों को प्रशय देना भी भ्रष्टाचार करने से कम नहीं है. जब अपनी जान पर खतरा महसूस होने लगता है तो एक छोटी सी बिल्ली भी शेरनी जैसा विकराल और हिंसक रूप अख्तियार कर लेती है.
अब चाहे कुछ भी हो जाए सभी आम नागरिकों को एकजुट होकर इस मिसन को कामयाब बनाना है चाहे राजीतिक दल अपना कितना ही प्रयास इस मुहिम को असफल बनाने बनाने के लिए करें.
धन्याबाद
सुभाष कांडपाल
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