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VIP’s पर जूते पड़ें तो घोर अपराध और गरीब पर लात घूसें पड़ें तो He Deserve for that

निष्पक्ष
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बड़ा Confused  हूँ , समझ में नहीं आ रहा है कि मेरा ज्ञान ही एक सीमित दायरे तक है, या मेरी अक्ल का इस बदलते हुए परिवेश और समय के साथ विकास नहीं हो सका है लेकिन फिर भी चिंतन, मनन और सोचने के लिए विवश हो जाता हूँ, ये जानते हुए भी कि मेरे सोचने और लिखने से कुछ भी नहीं होने वाला है, फिर भी अपने आप पर नियंत्रण करना बहुत मुश्किल हो जाता है. इसे हमारे कानून की कमजोरी और विसंगति कहें या कानून के अनुयायिओं का अल्पज्ञान या कानून के रक्षकों की ताना साही, जो कानून का अपने अपने हिसाब से अनुसरण करते हैं, जब चाहे जिस दिशा में कानून को ले जाया जाय और आजमाया जाय. एक बहुत पुराना जुमला है कि कानून सबके लिए बराबर है चाहे बड़ा हो या चाहे छोटा हो लेकिन ब्यवहार में इस कानून के जुमले की जो धजियाँ उड़ाई जाती हैं उसके मूक दर्शक हम सभी लोग होते है जिसमे कि कानून बनाने वाले भी शामिल होते है, कानून के रक्षक भी शामिल होते हैं और जिनके लिए कानून बनाया जाता है वो भी शामिल होते हैं. सच तो ये है कि इस देश में कानून कभी भी किसी के लिए सामान नहीं रहा है. यहाँ पर कानून भी हैसियत के अनुसार अपना काम करता आया है और करता रहेगा. एक छोटे से उदाहरण से मैं अपनी आप बात रखना चाहता हूँ. दुनिया प्रत्यक्ष दर्शी है जब किसी VIP’s पर जूते पड़ते हैं तो उसको जघन्य अपराध मान लिया जाता है. जूते मारने वाले को हमारी पुलिस तुरंत गिरफ्तार कर लेती है और कानून का शिकंजा उसके गले की फांद बन जाता है. ना ना प्रकार की कानून की धाराओं के साथ उस पर मुकदमा दर्ज १ सेकेण्ड में हो जाता है, ये जानते हुए भी कि जिस ब्यक्ति विशेष पर उसने जूता फेंका या मारा वो भी किसी न किसी रूप में अपराधी है या आरोपी है, लेकिन वहां पर उसके साथ एक अलग ही प्रकार का ब्यवहार किया जाता है. जिस ब्यक्ति को जूते फेंकने या मारने के आरोप में गिरफ्तार किया जाता है, पुलिस हिरासत में उसके साथ कैसा सलूक होता होगा, उसकी कल्पना मात्र से ही शरीर में कंप कम्पी होने लगती है

जब इस प्रकार के ये VIP’s अपराधी या आरोपी जेल या अदालत परिसर में जाते है तो सीना तान के इस प्रकार चलते हैं जैसे कि इन्होने कितना बड़ा महान कार्य कर लिया हो. हथकड़ी तो मैंने आजतक किसी भी VIP’s अपराधी और आरोपी के हाथों में नहीं देखी है. हमारे पुलिस अफसर और सुरक्षा कर्मी ससम्मान इनको जेल परिसर और अदालत परिसरों तक पहुचाने और ले जाने का काम बड़ी तन्मयता के साथ करते हैं और ठीक इसके विपरीत यदि एक छोटा मोटा और गरीब तबके का अपराधी और आरोपी जब पुलिस के हत्थे आता है तो वही पुलिस और कानून उनके साथ जानवरों जैसा बर्ताव करते हैं. अगर जल्दीबाजी में हथकड़ी साथ ले जाना भूल गए हौं तो छोटी बड़ी रस्सी से ही उनके हाथ बांधे जाते हैं. क्या यही हमारे कानून की समानता है?

निह्हथे और निर्बलों पर रौब जमाने की जब बात आती है तो हमारे पुलिस महकमा का नाम सबसे ऊपर अपने आप आ जाता है. अपने को सबका मित्र बताने वाली हमारी पुलिस, सदैव आपके साथ के मंत्र का जप करने वाली हमारी ये पुलिस, निरबल लोगों पर ऐसा पुलसिया जुल्म ढहाती है जिसका प्रत्यक्ष उदाहरण हम आते जाते देख सकते हैं. कभी गौर कीजिये उन गरीब और निर्बल लोगों पर जो अपनी आजीविका सड़कों के किनारे रेडी लगा कर करते हैं, ५० पैंसे से लोगों की प्यास बुझाने से करते हैं, जून की दोपहरी हो या जनवरी की शीत लहरी, रिक्शा खींच कर अपने और अपने परिवार का भरण पोषण करते हैं और जब इन्हीं लोगों पर पुलसिया डंडा और यहाँ तक कि लात, थप्पड़ और घूसें पड़ते हैं तो उनकी आत्मा क्या कहती होगी, इसकी हम लोग केवल कल्पना ही कर सकते हैं. और प्रत्युतर में ये कहना कि ये केवल इसी भाषा को समझते है, कितना तर्कपूर्ण है अपने आप में? और विडम्बना देखिये कि हमारे वही पुलिस वाले बड़े कारोबारियों जो कि अवैध रूप से अपना कारोबार चलाते हैं, उनसे हफ्ता वसूल करके अपने आप उनको जायज होने का अवैध लाईसेंस दे देते हैं. क्या यही हमारे कानून की समानता है?

विषय बहुत लम्बा है और बहुत कुछ लिखा भी जा सकता है, लेकिन एक प्रश्न मैं आप लोगों और उन सभी कानून वेताओं और कानून के रक्षकों के लिए छोड़े जा रहा हूँ कि

क्या वास्तव में कानून सबके लिए बराबर होता है?

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