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इसमें कोई दोराय या संशय वाली बात ही नहीं रह गयी है कि वर्तमान केंद्र सरकार स्वंतत्र भारत की सबसे भ्रष्ट सरकार है. भ्रष्ट सरकार केवल इसलिए नहीं है कि इस सरकार के कुछ सांसदों और मंत्रियों ने सामाजिक नैतिकता की सभी सीमायें तोड़कर अपने रुतबे और लोकतंत्र का गला घोंटकर जो भ्रष्टाचार किया है वो माफ़ी के काबिल नहीं है अपितु इसलिए भी कि इस केंद्र सरकार ने अपने विवेकानुसार और प्राप्त शक्तियों के बल पर समय रहते हुए उस भ्रष्टाचार पर नियंत्रण नहीं कर पायी.
भ्रष्टाचार पर नियंत्रण की बात छोडिये ये ज्ञात होने पर भी कि अमुक नेता और अधिकारी ने भ्रष्टाचार किया है, उसके खिलाप कानूनी कार्यवाही करने के बजाय पूरी केंद्र सरकार उन भ्रष्टाचारियों को बचाने की मुहीम में लग गयी चाहे वो ए राजा हो, कनिमोझी हो, भारत के सी वी सी या शीला. कलमाड़ी हो. सरकार की तरफ से इन सबको क्लीन चिट मिल गयी थी, अगर सुप्रीम कोर्ट इन मामले में हस्तक्षेप नहीं करता तो शायद राजा, कनिमोझी और कलमाड़ी जैसे महा भ्रष्टाचारी आज सलाखों के पीछे नहीं होते.
ये हमारे लोकतंत्र और संसद का दुर्भाग्य ही देखिये की हमारी संसद में कपिल सिब्बल जैसे जुगाडू, कुटिल, काले का सफ़ेद करने वाले सांसद और मंत्री हैं जिन्होंने टेलीकोम मिनिस्ट्री का पद सँभालते ही ए राजा को विभाग और सरकार की तरफ से क्लीन चिट दे दी थी और यहाँ तक कह दिया था की ए राजा के मंत्रित्व काल में देश को घाटा नहीं अपितु लाभ ही हुआ है. खैर इस विषय पर मुझे ज्यादा लम्बा नहीं जाना है, जनता सब कुछ जानती है.
जब से अन्ना हजारे और बाबा रामदेव ने भ्रष्टाचार के खिलाप मुहिम छेड़ी, तब से इस सरकार के भ्रष्टाचार के प्रति संवेदनशीलता पर कई प्रश्न चिन्ह खड़े हो गए है. क्या वास्तव में ये सरकार भ्रष्टाचार को समूल नाश करने के लिए चिंतित दिखाई दे रही है?, ये तो किसी भी दृष्टि कोण से अभी तक नहीं लग रहा है, खैर ये आने वाला वक्त ही बताएगा.
अब तक अन्ना हजारे को अनशन करने के लिए एक निश्चित जगह का न मिलना, इजाजत लेने के लिए सरकारी दफ्तरों के चक्कर लगवाना, निर्णय लेने में टाला-कस्सी करना सचमुच आजाद भारत के लोकतांत्रिक अधिकारों का हनन करना जैसे है.
जरा सोचिये जब हमारी सरकार अन्ना हजारे की टीम को अनशन की इजाजत देने में इतनी टाल बुराई कर रही है, इजाजत की फाइल को सरकारी अफसरों और दफ्तरों के चक्कर लगवा रही है तो एक आम इंसान को अपना सरकारी काम करवाने में कितनी मुसीबतों का सामना करना पड़ता होगा, इसकी मात्र कल्पना करने से ही शरीर में कम्पन पैदा हो जाती है. आज जब एक चेहरा देश और विश्व का चेहरा बन गया है और सरकार उसी के साथ ऐसा ब्यवहार कर रही है तो एक आम इन्सान जिसकी अपने घर से बाहर कोई पहिचान नहीं है, उसके साथ सरकारी दफ्तरों में कैसा ब्यवहार किया जाता होगा, इसका हम अंदाजा लगा सकते हैं.
जो सरकार की ये कार्य करने की प्रणाली है, मेरे जेहन में कुछ सवाल कौंध रहे हैं-
१- आखिर क्या सन्देश वर्तमान केंद्र सरकार आम जनता और देशवाशियों को देना चाहती है?
२- क्या केंद्र सरकार सरकारी अफसरों और दफ्तरों को ये सन्देश देना चाहती है की किस प्रकार किसी के काम को रोका जा सकता है और उसमे टांग अडाई जाती है?
३- क्या केंद्र सरकार अपनी कार्यगुजारी से ये सन्देश देना चाहती है की सरकारी पॉवर और पद का नाजायज इस्तेमाल कैसे किया जाता है?
४- क्या केंद्र सरकार ये तालिबानी फरमान आम जनता को सुनाना और दिखाना चाहती है की जो कुछ सरकार करे वही सही है और उनके फैसलों के विरुद्ध किसी को अपनी आवाज उठाने का कोई हक़ नहीं है?
५- क्या केंद्र सरकार ये सन्देश देना चाहती है की निर्बलों पर बाहुबल का कैसे प्रयोग किया जाता है और निर्बलों को कैसे कुचला जाता है?
६- क्या केंद्र सरकार ये सन्देश देना चाहती है की जनता को संविधान द्वारा प्रदत्त लोकतान्त्रिक अधिकारों का सरकार के सामने महत्व गौण है और सरकार संविधान से भी सर्वोपरि है?
७- क्या सरकार ये सन्देश देना चाहती है की कैसे डरा धमका कर लोगों की आवाज को बंद किया जाता है और कैसे एक डर का भाव आम जनता के बीच पैदा किया जाता है?
८- क्या सरकार उन तमाम सरकारी भ्रष्ट अफसरों और भ्रष्टाचारियों को ये पैगाम और विश्वास दिलाना चाहती है की डरने की कोई बात नहीं, आप भ्रष्टाचार और आम जनता को परेशान करते रहिये, आपका कोई बाल भी बांका नहीं कर सकता है, क्योंकि केंद्र सरकार का वरद हाथ आपके साथ है?
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