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समय २१वी सदी का

निष्पक्ष
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समय २१वी सदी का
आज यह कैसा आया
धरती अम्बर और पाताल पर
इंसानी संकट गहराया

धरती ब्याकुल अम्बर ब्याकुल
और जलाशय पाताल ब्याकुल
२१वी सदी के इंसानी पिचाश से
कंकड ब्याकुल जंगल ब्याकुल

धरती बोली अम्बर से
कैसा विकट समय ये आया
मेरी ममता तेरी दया का
आज कैसा ये प्रतिफल मिला

मेरे अपने ही मेरे तन मन को भेद रहे
नित असंख्य भौतिक प्रहारों से मेरे दिल को छेद रहे
बेबस लाचार बेदर्द बनकर कब तक मैं ये सहन करूँ
अपनी उजडती गोद का किसके पास मातम मनाओं

अम्बर बोला ठीक कहा प्रिये
वही संकट आज मुझ पर गहराया
२१वीन सदी का यह इंसानी पिचाश
आज मुझे भी कब्जाने आया

धरती अम्बर का करुण क्रंदन सुनकर
प्राण वायु मंद मंद विरस मुस्कराया
२१वीन सदी के इंसान से
मैं भी कहाँ बच पाया?

आज अपने अस्तित्व की
मैं भी लड़ाई लड़ रहा हूँ
नित नित नई जहरीली गैसों से
मैं भी संघर्ष कर रहा हूँ

२१वीन सदी के इंसान पर
अगला वार जल ने छेड़ा
इन पापी इंसानों ने
मुझे भी न कहीं का छोड़ा

हे धरती मैय्या तुम तो मेरी
अन्त: पीड़ा की साक्षी हो
मेरी जननी गंगा की भी
तुम प्रत्यक्ष प्रमाण दर्शी हो

पवित्र पाविनी जीवन दायनी
गंगा का हाल बेहाल है
कलुषित प्रदूषित और विषैला
इसी इंसान ने बनाया है.

सूख रहे जल श्रोत मेरे
कलुषित होती जल धारा
कोई बिना जल तडफ़ रहा
कोई पी रहा विष का प्याला

बात इंसानों तक ही रहती तो
शायद मुझे इतना दुःख दर्द न होता
मुझे तो फिक्र उन मूक जीवों की है
मुझ पर टिकी है जिनकी जीवन आशा

हे धरती मैय्या अब तुम्हीं बताओ
अब कितना बर्दास्त करूँ
जल ही जीवन कहलाने वाली
जीवन हरण का कारण बनु

कब जागेगा कब चेतेगा
अहसान फरामोश ये इंसान
भू जल जंगल अम्बर संरक्षण का
कब होगा इसको आत्म ज्ञान.

धन्यावाद
सुभाष कांडपाल

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