- 32 Posts
- 59 Comments
समय २१वी सदी का
आज यह कैसा आया
धरती अम्बर और पाताल पर
इंसानी संकट गहराया
धरती ब्याकुल अम्बर ब्याकुल
और जलाशय पाताल ब्याकुल
२१वी सदी के इंसानी पिचाश से
कंकड ब्याकुल जंगल ब्याकुल
धरती बोली अम्बर से
कैसा विकट समय ये आया
मेरी ममता तेरी दया का
आज कैसा ये प्रतिफल मिला
मेरे अपने ही मेरे तन मन को भेद रहे
नित असंख्य भौतिक प्रहारों से मेरे दिल को छेद रहे
बेबस लाचार बेदर्द बनकर कब तक मैं ये सहन करूँ
अपनी उजडती गोद का किसके पास मातम मनाओं
अम्बर बोला ठीक कहा प्रिये
वही संकट आज मुझ पर गहराया
२१वीन सदी का यह इंसानी पिचाश
आज मुझे भी कब्जाने आया
धरती अम्बर का करुण क्रंदन सुनकर
प्राण वायु मंद मंद विरस मुस्कराया
२१वीन सदी के इंसान से
मैं भी कहाँ बच पाया?
आज अपने अस्तित्व की
मैं भी लड़ाई लड़ रहा हूँ
नित नित नई जहरीली गैसों से
मैं भी संघर्ष कर रहा हूँ
२१वीन सदी के इंसान पर
अगला वार जल ने छेड़ा
इन पापी इंसानों ने
मुझे भी न कहीं का छोड़ा
हे धरती मैय्या तुम तो मेरी
अन्त: पीड़ा की साक्षी हो
मेरी जननी गंगा की भी
तुम प्रत्यक्ष प्रमाण दर्शी हो
पवित्र पाविनी जीवन दायनी
गंगा का हाल बेहाल है
कलुषित प्रदूषित और विषैला
इसी इंसान ने बनाया है.
सूख रहे जल श्रोत मेरे
कलुषित होती जल धारा
कोई बिना जल तडफ़ रहा
कोई पी रहा विष का प्याला
बात इंसानों तक ही रहती तो
शायद मुझे इतना दुःख दर्द न होता
मुझे तो फिक्र उन मूक जीवों की है
मुझ पर टिकी है जिनकी जीवन आशा
हे धरती मैय्या अब तुम्हीं बताओ
अब कितना बर्दास्त करूँ
जल ही जीवन कहलाने वाली
जीवन हरण का कारण बनु
कब जागेगा कब चेतेगा
अहसान फरामोश ये इंसान
भू जल जंगल अम्बर संरक्षण का
कब होगा इसको आत्म ज्ञान.
धन्यावाद
सुभाष कांडपाल
Read Comments