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निर्मल बाबा vs कॉरपोरेट बाबा

निष्पक्ष
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जिन मीडिया वालों ने अपनी दुकान चलाने के लिए निर्मल बाबा को एक चमत्कारिक बाबा बना दिया, घर घर में उनके चमत्कार को पहुचाया, आज उन्हीं मीडिया वालों में निर्मल बाबा और उनके चमत्कारों में खोट नजर आ रहा है, उनको सबसे बड़ा फ्रौड बाबा घोषित किया जा रहा है.

निर्मल बाबा चमत्कारिक ब्यक्ति हैं कि नहीं वो तो निर्मल बाबा ही बता सकते हैं लेकिन मीडिया ने उनका पर्दाफाश करके ये जतलाने की जरूर कोशिश की है कि ये जो कुछ हो रहा है वो सही नहीं हो रहा है. लोगों की धार्मिक भावनाओं के साथ खिलवाड़ करके उनका शोषण किया जा रहा है. इस बात में कोई संशय नहीं है. मेरे हिसाब से सभी लोग इस बात से सहमत होंगे.

लेकिन क्या कभी यही मीडिया कॉर्पोरेट बाबाओं का भी पर्दाफाश करने की चेष्टा करेगा..जो झूठे विज्ञापनों के जरिये लाखों करोड़ों का कारोबार कर रहा है. “एक साबुन से नहाने या क्रीम के लगाने से कोई ७ दिन में खूबसूरत बन जाता है”, “एक कोल्ड ड्रिंक के पीने से कोई आसमान से कूदने लग जाता है, उसका डर पल भर में गायब हो जाता है ”, “एक पान गुटका खाने से कोई करोड़ों का होटल पल भर में खरीद लेता है”, “एक मोटर सायकिल या कार खरीदने से कोई उसे आसमान में उड़ाने लगता है, पहाड़ों पर चलाने लगता है”, “एक बनियान पहनने से उसके शरीर में इतनी शक्ति आ जाती है कि वो २-४ लोगों को २ सेकंड में ही पीट लेता है” आदि ऐसे कई झूठे विज्ञापन हैं जिनका सचाई से दूर दूर तक कोई वास्ता नहीं होता है लेकिन फिर भी झूठे दावे करके कॉर्पोरेट कम्पिनिया और विज्ञापन एजेंसियां ऐसे विज्ञापन बनाकर लोगों को अपनी फांसती हैं और अपना कारोबार चलाती है.

सवाल यह है कि जब निर्मल बाबा जैसे लोग झूठ का सहारा लेकर अपनी दुकान चलाते हैं तो वो बुद्धिजीवियों और समाज सेवियों की नजर में घोर अपराध हो जाता है, लेकिन जब एक कॉर्पोरेट कंपनी इसी तरह झूठ का सहारा लेकर अपने प्रोडक्ट(उत्पाद) को बेचती है तो उसे किस दृष्टिकोण से जायज ठहराया जा सकता है?

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